Tuesday, 27 February 2018
Friday, 23 February 2018
शायरी - तलाश है
तलाश है
यहाँ तरह तरह के शख़्स हैं,
और तरह तरह की प्यास है /
जिन्हें तैरना आता नहीं,
उन्हें समन्दरों की तलाश है /
बागवां का फर्ज़ है वह,
बाग की ख़िदमत करे /
फ़र्क क्या गुल अगर,
गुलाब है या पलाश है /
जिन्हें तैरना..............
कौन सही और कौन ग़लत,
यह फ़ैसला कैसे करें ?
जब शैतानों की फ़ितरत है,
और दरवेशों का लिबास है //
जिन्हें तैरना..............
कितनी गज़ब रफ़्तार,
पकडे है शहर की ज़िन्दगी /
निभते नही रिश्ते यहाँ,
कोई दूर है या पास है /
जिन्हें तैरना ..........
रोज़ हैं तक़रीर होतीं,
संगीन मुददों पर यहाँ /
हैं लोग वो शामिल जिन्हें,
होश है न हवास है /
जिन्हें तैरना .........
कल की तरह अब भी हक़ीक़त,
हम गैरजानिबदार हैं /
ना कोई इन्साफ हासिल
ना कोई अहसास है /
जिन्हें तैरना आता नहीं
उन्हें समन्दरों की तलाश है /
हक़ीक़त राय शर्मा
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