मेरा हक़ दीजिए मुझको
(औरत की आवाज़)
तकाज़ा वक़्त का है अब हिफाज़त दीजिए मुझको,
उठा कर सर ज़माने में जीने दीजिए मुझको I
बरख़ुरदार से कम क़ाबिल हरगिज़ नहीं हूँ मै,
हुनर अपना दिखाने का मौक़ा दीजिए मुझको I
सजा़ देते नहीं हो क्यों गुनह्गारों को जल्दी से ,
मै माँ भी हूँ और दुख्तर भी इज्ज़त दीजिए मुझको I
मैंने मेहनत बहुत की है कई कुर्बानियाँ दी हैं,
जगह अपने बराबर में जल्द से दीजिए मुझको I
मुझे सियासत ने बख़्शी है’ झूठे वादों की जागीरें ,
हक़ीक़त में शराफत से मेरा हक़ दीजिए मुझको I
दुख्तर-बेटी हक़ीक़त राय शर्मा
गाजियाबाद (उ०प्र०)
Awesome one....
ReplyDeleteVery touching and Beautifully expressed the real pain of women in Indian society.
ReplyDeleteWe support the cause and lines.
Beautifully crafted the reality of past and demand of present
ReplyDeletevery well crafted lines sir....i am a fan of your penned poems....
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली बात कही है
ReplyDeleteAmazing shayri sir ...loved it
ReplyDeletenice poem
ReplyDeletenice poem
ReplyDeletenice one sir
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