Saturday, 9 January 2016

मेरा हक़ दीजिए मुझको (शायरी)



मेरा हक़ दीजिए मुझको
      (औरत की आवाज़)

 तकाज़ा वक़्त का है अब हिफाज़त दीजिए मुझको
उठा कर सर ज़माने में जीने दीजिए मुझको I 
  
 बरख़ुरदार से कम क़ाबिल हरगिज़ नहीं हूँ मै
हुनर अपना दिखाने का मौक़ा दीजिए मुझको I 

सजा़ देते नहीं हो क्यों गुनह्गारों को जल्दी से 
मै माँ भी हूँ और दुख्तर भी इज्ज़त दीजिए मुझको I
  
मैंने मेहनत बहुत की है कई कुर्बानियाँ दी हैं,
जगह अपने बराबर में जल्द से दीजिए मुझको I
  
मुझे सियासत ने बख़्शी है झूठे वादों की जागीरें ,
हक़ीक़त में शराफत से मेरा हक़ दीजिए मुझको I

 
 दुख्तर-बेटी      हक़ीक़त राय शर्मा
      गाजियाबाद (उ०प्र०)


9 comments:

  1. Very touching and Beautifully expressed the real pain of women in Indian society.
    We support the cause and lines.

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  2. Beautifully crafted the reality of past and demand of present

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  3. very well crafted lines sir....i am a fan of your penned poems....

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  4. दिल को छू लेने वाली बात कही है

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  5. Amazing shayri sir ...loved it

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