मेरी बहिन मरहूमा कु. रूपवती शर्मा के लिए
शक्ल तक भी तेरी अब मुझे याद नहीं,
सिवाय एक के निशानी भी मेरे पास नहीं I
याद किये जाता हूँ मैं तुझे अक्सर,
जानते हुए मिलने की कोई आस नहीं I
यह बात हक़ीक़त नहीं कामिल फ़साना है,
जगह ज़िन्दगी में मेरी ,तेरी ख़ास नहीं I
हक़ीक़त राय शर्मा
गाज़ियाबाद और नबीनगर, ज़िला बुलंदशहर (उ०प्र०)
Shayari by
Hakikat Rai Sharma, Ghaziabad & Nabinagar, Bulandshahr (UP)
Appreciated by:
Shaubhik Bhardwaj
VERY NICE POETRY SIR
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