Tuesday, 19 July 2016

शायरी – शक्ल तक


मेरी बहिन मरहूमा कु. रूपवती शर्मा के लिए




शक्ल तक भी तेरी अब मुझे याद नहीं,

सिवाय एक के निशानी भी मेरे पास नहीं I


याद किये जाता हूँ मैं तुझे अक्सर,

जानते हुए मिलने की कोई आस नहीं I


यह बात हक़ीक़त नहीं कामिल फ़साना है,

जगह ज़िन्दगी में मेरी ,तेरी ख़ास नहीं I


  

 हक़ीक़त राय शर्मा
गाज़ियाबाद और नबीनगर, ज़िला बुलंदशहर (उ०प्र०)

Shayari by
Hakikat Rai Sharma, Ghaziabad & Nabinagar, Bulandshahr (UP)

Appreciated by:

Shaubhik Bhardwaj



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