मेरे दादा मरहूम श्री भीम सैन शर्मा के लिए
सबक़ मुझे मक्तब से पहले सिखाया तुमने,
चारपाई पर बैठ पकड़ चलना सिखाया तुमने I
खुद की आँखों में रौशनी थी ज़रा भी नहीं,
बावज़ूद इसके मुझे दुनिया को दिखाया तुमने I
हक़ीक़त उनके लिए तुम और क्या कर सकते हो,
अच्छा किया याद में जो कलम चलाया तुमने I
हक़ीक़त राय शर्मा
गाज़ियाबाद और नबीनगर, ज़िला बुलंदशहर (उ०प्र०)
Shayari by
Hakikat Rai Sharma, Ghaziabad & Nabinagar, Bulandshahr (UP)
Appreciated by Mohd Akhlas
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